गोंडा कोरोना जैसी महामारी से निपटने के लिए देशभर में लगातार बढ़ रहे लॉक डाउन के कारण गैर प्रांतों में मेहनत मजदूरी करने गए श्रमिकों के सब्र का बांध टूट गया। रोजी तो छीन ही गई थी। जब रोटी का संकट गहराया तो मोबाइल बेचकर साइकिल खरीदी और घर के लिए निकल पड़े। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से 1986 किलोमीटर साइकिल चला कर 13 दिनों में गोंडा पहुंचे श्रमिकों के हाल पूरी तरह से बेहाल हो चुके थे। उन्हें बलरामपुर जनपद के पचपेड़वा कस्बा जाना था। बुधवार की सुबह करीब 11 बजे का वक्त रहा होगा गोंडा बलरामपुर राजमार्ग पर इंदिरा पुर गांव के पास 10 श्रमिकों का जत्था जा रहा था। एक साइकिल पर 2 श्रमिक सवार थे। कई दिनों के भूखे प्यासे अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए बेताब दिखे। पचपेड़वा के मोहम्मद आरिफ खान ने बताया कि वह सभी लोग चेन्नई में रहकर मेहनत मजदूरी करते थे। लॉक डाउन लगने के बाद जब हम का रोजगार छिन गया। ट्रेन बंद हो गई। करीब 1 माह तक इंतजार करने के बाद जब उन लोगों के सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया। कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। तो घर पर फोन करके बताया कि अब मोबाइल बेचकर साइकिल खरीदने जा रहा हूं। फोन भी आज से बंद हो जाएगा। आरिफ खान कहते हैं यह बात सुनकर परिवार के लोग भी फूट-फूटकर रोने लगे। उन्हें समझाया कि हम किसी तरह साइकिल से 10 से 12 दिनों में घर पहुंच जाएंगे। कहा कि 13 दिन चलते हो गया। रास्ते में कई जगह हम लोगों की जांच भी हुई है कहीं-कहीं पर भोजन के पैकेट भी मिले अब तो यहां से घर 90 किलोमीटर बचा है शाम तक घर पहुंच जाएंगे।