वीडियो जानकारी: 21.12.2019, हार्दिक उल्लास शिविर, गोआ, भारत
प्रसंग:
आयुःकीर्तिकराणीह यानि कर्माणि सेवते।
शरीरग्रहणे यस्मिंस्तेषु क्षीणेषु सर्वशः॥६॥
आयुःक्षयपरीतात्मा विपरीतानि सेवते।
बुद्धिर्व्यावर्तते चास्य विनाशे प्रत्युपस्थिते॥७॥
सिद्ध ने कहा- काश्यप! मनुष्य इस लोक में आयु और कीर्ति को बढ़ाने वाले जिन कर्मो का सेवन करता है,वे शरीर-प्राप्ति में कारण होते हैं। शरीर-ग्रहण के अनन्तर जब वे सभी कर्म अपना फल देकर क्षीण हो जाते हे, उस समय जीव की आयु का भी क्षय हो जाता है। उस अवस्था में वह विपरीत कर्मो का सेवन करने लगता है और विनाशकाल निकट आने पर उसकी बुद्धि उलटी हो जाती है।
~ उत्तर गीता (अध्याय २, श्लोक ६)
~ सिद्ध कौन से कर्म की बात कर रहे हैं?
~ सही और ग़लत कर्मों को कैसे जाने और तय कैसे करें?
~ शरीर प्रप्ति का क्या अर्थ होता है?
~ मनुष्य अपनी आयु और कीर्ति क्यों बढ़ाना चाहता है?
~ शरीर क्या, उसका अहमवृत्ति से संबंध क्या?
संगीत: मिलिंद दाते
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