(गीता-46) आत्मज्ञान के प्रकाश में, अंधे कर्म सब त्याग दो... || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2023)

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वीडियो जानकारी: 27.09.23, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:

मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा ।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥
भगवद गीता - 3.30

अर्थ: विवेक बुद्धि द्वारा सारे कर्म तथा कर्मफल मुझ में अर्पित करके निष्काम,
ममता-रहित और शोक- शून्य होकर तुम युद्ध करो।

आत्मज्ञान के प्रकाश में
अंधे कर्म सब त्याग दो
निराश हो निर्मम बनो
तापरहित बस युद्ध हो

~ ऋषि किसे त्यागने के लिए कह रहे हैं?
~ जगत बंधन है या मुक्ति का अवसर, यह किस पर निर्भर करता है?
~ संसार के साधनों का सार्थक उपयोग क्या है?
~ सुख किसे कहते हैं?
~ जगत क्या है?
~ क्यों कोई वस्तु हीन या श्रेष्ठ नहीं होती? वस्तुओं से हमारा रिश्ता कैसा होना चाहिए?

माटी चुन चुन महल बनाया, लोग कहें घर मेरा ।
ना घर तेरा, ना घर मेरा, चिड़िया रैन बसेरा ॥
संत कबीर


संगीत: मिलिंद दाते
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