जो गलत कर्मफल की ओर आकर्षित है, उसका हर कर्म गलत होगा || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2019)

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वीडियो जानकारी:

शब्दयोग सत्संग
3 अगस्त, 2019
पुणे, महाराष्ट्र

प्रसंग:
श्रीमद्भगवद्गीता गीता (अध्याय 4, श्लोक 14)

न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।
इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ॥

भावार्थ :
कर्मों के फल में मेरी स्पृहा नहीं है,
इसलिए मुझे कर्म लिप्त नहीं करते,
इस प्रकार जो मुझे तत्व से जान लेता है,
वह भी कर्मों से नहीं बँधता॥
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कौन सा कर्मफल चाहिए? क्या उससे हमें लाभ भी है?
जीवन में चाहने योग्य क्या है? जीव की अंतिम चाह क्या है?
आशा पूर्ण होने के बाद भी क्यों अपूर्णता छोड़ जाती है?

संगीत: मिलिंद दाते

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