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वीडियो जानकारी: 24.01.2020, अद्वैत बोध शिविर, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत
प्रसंग:
यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन ।
कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते ॥3.7॥
भावार्थ : किन्तु हे अर्जुन! जो पुरुष मन से इन्द्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ समस्त इन्द्रियों द्वारा कर्मयोग का आचरण करता है, वह विशिष्ठ है ॥7॥
~ श्रीमद् भगवद्गीता (अध्याय ३, श्लोक ७)
~ निष्काम कर्म का वास्तविक मर्म क्या हैं?
~ निष्कामता से कर्म कैसे करें?
~ निष्काम कर्मयोग का सिद्धांत क्या हैं?
~ कौन सा मनुष्य अतिउत्तम है?
~ कर्म करते समय लाभ-हानि देखना सकामता है या नहीं?
संगीत: मिलिंद दाते
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