निष्काम कर्म का वास्तविक अर्थ क्या? || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2024)

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वीडियो जानकारी: 21.03.2024, गीता समागम, ग्रेटर नोएडा

प्रसंग:
एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभिः।
कुरु कर्मैव तस्मात्त्वं पूर्वैः पूर्वतरं कृतम्।।

~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 4, श्लोक 15

अर्थ:
ऐसा मुझे जानकर आजतक न जाने कितने मुमुक्षुओं ने निष्काम कर्म करे हैं। तो इस तरह जैसे तुमसे पहले बहुत सारे लोग निष्काम कर्म करके अपनी भीतरी अनंत ऊँचाई को पा चुके हैं, पार्थ, तुम भी वैसे ही कर्म करो।

अकेले नहीं तुम पहले नहीं
जब सच के तुम समीप हुए
तुम उनकी संगत में हो अब
इतिहास की रात जो दीप हुए

~ आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ


~ निष्काम कर्म का अर्थ?
~ निष्काम कर्मी कैसे बनें?
~ अध्यात्म किसे कहते हैं?
~ जीवन का एक मात्र कर्तव्य क्या है?
~ जीवन में मुक्ति संभव है?

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केस कहा बिगाड़िया, जे मुंडे सौ बार।
मन को काहे न मूंडते, जा में भरे विकार ।।
~ संत कबीर

हीरा पड़ा बाज़ार में, रहा छार लपटाय।
बहुतक मूरख चलि गए, पारख लिया उठाय ।।
~ संत कबीर

अहंकार में अंधकार में, अज्ञान में मतिभ्रष्ट हैं।
कल उन्हें क्या कष्ट हो, वो आज ही जब नष्ट हैं।
(आचार्य प्रशांत द्वारा सरल काव्यात्मक अर्थ) ~ भगवद् गीता - 3.32

पहिले तो मन कागा था, करता जीवन घात।
अब तो मन हंसा भया, मोती चुन चुन खात ।।
~ संत कबीर

संगीत: मिलिंद दाते
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