भगवद गीता अध्याय १ पद ३४ और ३५ | अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

Artha 2019-02-05

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भगवद गीता अध्याय १ पद ३४ और ३५ | अर्था । आध्यात्मिक विचार

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१ चौतीसवें और पैंतीसवें श्लोक में अर्जुन जे कहा :

मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाः संबंधिनस्तथा।

एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन ।। ३४ ।।

अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते

निहत्य धार्तराष्ट्रान्न: का प्रीतिः स्याज्जनार्दन ।। ३५ ।।


२ यहाँ अर्जुन श्री कृष्ण को विष्णु सहस्त्रनाम में उल्लेखित दो नामों से पुकारते हैं

३ असुर मधु का वध करने के लिए मधुसूदन और सब के ऊपर अपने कृपा दृष्टि रखने वाले जनार्दन

४ इन श्लोकों का अर्थ है:

हे मधुसूदन! जब सभी सम्बन्धी मेरे सामने उनके जीवन के सभी सुखों को त्याग करके इस युद्ध के लिए एकत्रित हुए है। मैं इन सभी को मारना नहीं चाहता हूँ, भले ही यह सभी मुझे ही मार डालें !!

हे जनार्दन! मैं तीनों लोकों के राज्य के लिए भी मैं इन सभी को मारना नहीं चाहता, फिर पृथ्वी के लिए तो कहना ही क्या है? धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें कौन सा आनंद प्राप्त होगा?

५ भगवद गीता के अगले वीडियो देखें जहां अर्जुन भगवान कृष्ण को बताता है कि उसे अपने चचेरे भाईयों को क्यों नहीं मारना चाहिए

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