भगवद गीता - अध्याय २ - पद ३२ और ३३ | अर्था । आध्यात्मिक विचार | भगवद गीता का ज्ञान

Artha 2019-02-05

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इस वीडियो देखिए की भगवान कृष्ण अर्जुन को क्षत्रिय के रूप में जन्म लेने के कारण भाग्यशाली क्यूँ बताते है

१ बत्तीसवां श्लोक इस प्रकार है;

यदृच्छया चोपपन्नां स्वर्गद्वारमपावृतम।

सुखिनः क्षत्रियाः पार्थ लभन्ते युद्धमीदृशम।।३२।।

२ इस श्लोक का अर्थ है;

हे पार्थ! वे क्षत्रिय भाग्यवान होते है, जिन्हे ऐसे युद्ध के अवसर अपने-आप प्राप्त होते है जिससे उनके लिये स्वर्ग के द्वार खुल जाते है

३ तेंतीसवां श्लोक इस प्रकार है;

अथ चेत्त्वमिमं धर्म्यं सङ्‍ग्रामं न करिष्यसि ।

ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि ।।३३।।

४ इस श्लोक का भावार्थ है

परंतु यदि तुम इस धर्म के लिये युद्ध नहीं करोगे तो अपनी कीर्ति को खोकर कर्तव्य-कर्म की उपेक्षा करने के कारण पाप के भागी बनोगे

५ भगवद गीता के अगले वीडियो में देखिए की भगवान कृष्ण अर्जुन को अपकीर्ति के परिणामों के बारे में क्या समझाते है

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