श्रद्धा, संयम और साधना का आत्मज्ञान से संबंध || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2024)

Views 10

वीडियो जानकारी: 26.08.2024, गीता समागम, ग्रेटर नोएडा

विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने द्वैतात्मक शांति और अद्वैत शांति के बीच के अंतर को स्पष्ट किया है। उन्होंने बताया कि द्वैत शांति एक तात्कालिक और सतही शांति है, जो बाहरी परिस्थितियों के बदलने पर मिलती है, जबकि अद्वैत शांति एक गहरी और स्थायी शांति है, जो आंतरिक परिवर्तन से आती है।

आचार्य जी ने यह भी बताया कि श्रद्धा, संयम, और साधना आत्मज्ञान के लिए आवश्यक हैं। श्रद्धा का अर्थ है अपने वर्तमान स्थिति से ऊब और आगे की संभावनाओं के प्रति प्रेम। संयम का मतलब है यात्रा के दौरान आने वाली चुनौतियों का सामना करना, और साधना का अर्थ है पुरानी परिस्थितियों को नए दृष्टिकोण से देखना।

उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए इन तीनों तत्वों का होना अनिवार्य है। जब व्यक्ति अपने भीतर की अशांति को समझता है और उसे दूर करने का प्रयास करता है, तब वह वास्तविक शांति की ओर बढ़ता है।

आचार्य जी ने यह भी कहा कि ज्ञान से शांति प्राप्त होती है, और यह शांति तात्कालिक नहीं होती, बल्कि स्थायी होती है। उन्होंने बताया कि जो लोग अपने जीवन में छोटी-छोटी समस्याओं में उलझे रहते हैं, उन्हें गीता या अध्यात्म की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि वे अभी भी द्वैत शांति में जी रहे हैं।


श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः । ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥
भगवद गीता - 4.39

अथातो ब्रह्म जिज्ञासा।
ब्रह्मसूत्र - 1.1.1


🎧 सुनिए #आचार्यप्रशांत को Spotify पर:
https://open.spotify.com/show/3f0KFweIdHB0vfcoizFcET?si=c8f9a6ba31964a06

Share This Video


Download

  
Report form
RELATED VIDEOS