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वीडियो जानकारी: 21.06.24, भगवद् गीता सत्र, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् ।
नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥
वे अमृत रूप यज्ञावशिष्ट भोजन करने वाले सनातन नित्य ब्रह्म को प्राप्त करते हैं।
हे अर्जुन, यज्ञ न करने वाले का यह लोक नहीं है तो अन्य लोक भी कहाँ है?
भगवद् गीता-4.31
~ यज्ञ क्या है?
~ अवशिष्ट क्या है?
~ 'अवशिष्ट' किस अर्थ में उपयोग हो रहा है?
~ आचार्य प्रशांत से गीता कैसे सीखें?
संगीत: मिलिंद दाते
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