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वीडियो जानकारी: 03.08.24, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक 4.36
अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः ।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि ।।
अन्वयः
चेत् (यदि) सर्वेभ्यः (सब) अपि पापेभ्यः (समस्त पापियों से) पापकृत्तमः (तुम अधिक [पापी हो]) सर्व (सब) वृजिनं (पाप-समुद्र को) ज्ञानप्लवेन एव (ज्ञान रूप बेड़े पर सवार होकर) सन्तरिष्यसि (उत्तीर्ण हो सकोगे) ॥
अर्थः
अगर सब पापियों से अधिक पापी तुम अपने आप को समझ पाओ, तो ज्ञान रूपी बेड़े पर सवार होकर के पाप समुद्र से पार हो जाओगे।
काव्यात्मक अर्थ
देख खुद को गौर से
कपट है भीतर कितना
यही ज्ञान मुक्ति दे
मुक्ति माने देखना
~ पाप क्या है?
~ ज्ञान क्या है?
~ सबसे बड़ा पापी कौन है?
~ कृष्ण से क्या माँगना चाहिए?
~ प्रेम क्या है?
~ आध्यात्मिक व्यक्ति पाप के बारे में क्या पूछता है?
~ ज्ञान की प्रक्रिया क्या है?
~ सत्य कब देख पाएंगे?
~ गलत निर्णयों का सबसे बड़ा नुकसान क्या है?
संगीत: मिलिंद दाते
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