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शब्दयोग सत्संग
२२ फ़रवरी २०१८
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
अर्जुन उवाच,
अथ केन प्रयुक्तोSयं पापं चरति पुरुषः |
अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः || ३६ ||
अर्जुन बोले- हे वार्ष्णेय! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है, जैसे उससे बलपूर्वक कराया जा रहा हो।
(अध्याय ३, श्लोक ३६)
श्री भगवानुवाच
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः |
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् || ३७ ||
श्री भगवान् बोले- यह काम ही क्रोध है, जो रजोगुण से उत्पन्न हुआ है, यह सब कुछ खा जाने वाला और बड़ा पापी है। इसे ही वैरी जान।
(अध्याय ३, श्लोक ३७)
प्रसंग:
मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कौन?
रजोगुण क्या होता है?
सतोगुण क्या होता है?
रजोगुण और तमोगुण में क्या भेद है?
कृष्ण कामना को सबसे बड़ा शत्रु क्यों मानते है?
कामना क्या है?