बीता हफ़्ता तमाम तरह की घटनाओं का गवाह रहा. इस बार की चर्चा जब आयोजित की गयी, उस वक़्त देश के कुछ हिस्सों में साल 2014 के बाद तनाव, द्वंद्व, संघर्ष, भ्रम व मायूसी के 5 सालों से हताश-निराश अवाम एक बार फ़िर उम्मीदों से बेतरह लैश होकर पहले चरण के मतदान में अपने मताधिकार का प्रयोग कर रही थी. चर्चा में इस हफ़्ते सुप्रीम कोर्ट द्वारा राफेल मामले में प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए दिये गये फैसले, चुनाव के धड़कते माहौल में सीमा पार से आती ख़बर जिसमें इमरान ख़ान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनकी पार्टी द्वारा बहुमत हासिल करने पर भारत-पाकिस्तान संबंधों में गर्माहट आने की उम्मीद जतायी, बस्तर में नकुलनार इलाके में हुआ नक्सली हमला जिसमें बीजेपी के विधायक व 5 सीआरपीएफ जवानों समेत कुल छः लोगों की मृत्यु हो गयी और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के ब्लॉग अपडेट व भाजपा के चुनावी घोषणापत्र पर चर्चा की गयी.
इस हफ़्ते की चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी ने शिरकत की. साथ ही लेखक-पत्रकार अनिल यादव भी चर्चा में शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
राफेल मामले में दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए दिये गये फैसले से चर्चा की शुरुआत करते हुए, अतुल ने सवाल किया कि एक तरफ़ सरकार द्वारा इस मामले से लगातार पीछा छुड़ाने के प्रयास लगातार जारी रहे और अब चुनावी उठापटक के बीच सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस तरह का फैसला दिये जाने के बाद अब आप राफेल मामले को किस तरफ़ जाता हुआ देखते हैं? क्या बात राहुल गांधी द्वारा लगातार लगाये जा रहे आरोपों की दिशा में आगे बढ़ गयी है?
जवाब में पेंटागन पेपर्स का ज़िक्र करते हुए हृदयेश ने कहा, “यहां पर एक तो प्रोसीजर का मामला इन्वाल्व है, इसके साथ ही मामला पॉलिटिकल परसेप्शन का भी हो गया है. इस वक़्त कांग्रेस ने मैनिफेस्टो में जिस तरह से ख़ुद को सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर ऊपर दिखाने की कोशिश की थी, इसके बाद प्रोपराइटी के मामले में एक बयानबाजी करने में उसको मदद मिलेगी.”
इसी कड़ी में मीडिया के नज़रिये से इस मसले को देखते हुए अतुल ने सवाल किया कि इस मौके पर यह फैसला सरकार के लिए तो झटके जैसा है, लेकिन जबकि पिछले पांच सालों म?