एनएल चर्चा अपने 50वें अध्याय पर पहुंच गई. इस लिहाज से इस बार की चर्चा बेहद ख़ास रहीं. 50वीं चर्चा को हमने न्यूज़लॉन्ड्री के यूट्यूब चैनल पर लाइव प्रसारित किया.
इस बार की चर्चा का मुख्य विषय रहा 1984 के सिख विरोधी दंगों के एक मामले में कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को हुई उम्रकैद की सज़ा. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट द्वारा राफेल डील के मामले में हुए कथित घोटाले के आरोपों से जुड़ी सारी याचिकाओं को ख़ारिज करना, दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के नेता एमके स्टालिन द्वारा राहुल गांधी को अगला प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की घोषणा और साथ ही फ्रांस में बीते डेढ़ महीने से चल रहे यलो वेस्ट आंदोलन पर हमारी चर्चा केंद्रित रही.
इस बार की चर्चा में बतौर मेहमान द वायर की सीनियर एडिटर आरफा खानम शेरवानी हमारे साथ जुड़ी साथ ही साथ न्यूज़लॉन्ड्री के ओपिनियन राइटर व स्तंभकार आनंद वर्धन भी इस चर्चा का हिस्सा रहे. इसके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री के असिस्टेंट एडिटर राहुल कोटियाल भी चर्चा में शामल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल चौरसिया ने 1984 में हुए सिख़ विरोधी दंगों का जिक्र किया. उन्होंने कहा, “एक चीज़ हम देखते है जब इस तरह की चीज़ें होती हैं और दंगो की बात होती है तो हम तुलना करने लगते हैं की 2002 में जो हुआ उसमे सज़ा कब होंगी. यह एक तरह की कोशिश होती है की जो अपने पाप या अपने कृत्य को कमतर साबित किया जाए और दुसरों के कारनामों को बड़ा करके दिखाया जाए.”
अतुल ने आनंद से एक सवाल किया, "आनंद ये जो इतनी देर से फैसला आया है इस फैसले से जो हमारा रूलिंग क्लास है उस पर न्याय की प्रभुता स्थापित होती हैं, जबकि इतनी देर से न्याय मिला है?”
जवाब में आनंद कहते हैं “न्याय की प्रभुता समय के साथ स्थापित होता है कि वो कितना टाइम स्पेसिफिक है. जब कम्युनल वॉयलेंस बिल आया 2005 में जिसे राज्यसभा में रखा गया उसमे इस तरह के मामलों को फास्ट ट्रैक करने का प्रावधान था. पर सरकारें इसे लेकर सहज नहीं थीं. सरकारों की कोशिशइसे पूरी तरह से अप्रसंगिक ठहराने पर केंद्रित थी. कहने का मतलब जो ये अप्रासंगिकता जो है संसदीय भाषा में सरकारी उदासीनता को दिखाती है. इसे एक प्रधानमंत्री की क्रिया-प्रतिक्रिया वाली मानसिकता क