आज हम संक्षेप में जिन तीन लोगों का ज़िक्र करने जा रहे हैं, उनमें से एक ने कलम थामने, यानी शिक्षा-दीक्षा को समाज, खासकर औरतों के लिए बेहद अहम बताया, यानी सावित्रीबाई फुले। दूसरे ने कलम को एक सर्जिकल ब्लेड की तरह थामकर इस समाज की खूबसूरत चमड़ी के नीचे छिपी गंदगी को नुमायां करने का काम किया, जिस पर लाख अश्लीलता के आरोप लगे हों, लेकिन जिसके जैसा सभ्य शहरी अपनी मिसाल आप ही है, सआदत हसन मंटो और तीसरा एक ऐसा शख़्स, जिसने कलम के ज़रिये हर उस जगह उजाला फैलाया, वह जहां भी रहा, चाहे वह कोरे कागज़ हों, चाहे फिल्मों की दुनिया हो या फिर मुशायरे की महफ़िलें। वह जब तक जिया, अपने समाज के लिए जिया। उसके लिए अपने दम पर वह सब कुछ किया, जो कुछ भी वह कर सकता है। ये नाम है कैफ़ी आज़मी का। इन तीनों ने ही औरत के वजूद को इस समाज के लिए ही नहीं, खुद उसके अपने अस्तित्व के लिए भी ज़रूरी समझा। ये सच इनकी कथनी में भी नज़र आता है और करनी में भी।