खेत, जंगल, पेड़ बचा लो, तभी देश भी बच पाएगा I Damini Yadav I Hindi Ki Bindi

The Wire 2021-06-03

Views 1

महज़ पेड़ों को बचाने के लिए कोई अपनी जान की बाज़ी तक लगा सकता है, इस बात पर यकीन करना शायद तब मुश्किल हो जाता, अगर इसी तरह के एक बहुत बड़े उदाहरण का साक्षी हमारा ये वर्तमान समय नहीं होता, जबकि लाखोलाख किसान अपने सुख-चैन को त्यागकर, अपनी जान तक की परवाह किए बिना इस समय दिल्ली की सरहदों पर धरना दिए न बैठे होते। हमने जिस आंदोलन का ज़िक्र किया था, उसे चिपको आंदोलन के नाम से जाना जाता है। दरअसल सतर के दशक में विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही थी। उस समय के उत्तर प्रदेश और आज के उत्तराखंड के चमोली ज़िले के रेणी में लगभग ढाई हज़ार के आस-पास पेड़ों को वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा काटा जाना था, जिसका स्थानीय लोगों ने ज़ोरदार विरोध किया, क्योंकि उनका विश्वास था कि उनका अस्तित्व इन्हीं पेड़ों पर आश्रित है। यदि पेड़ बचे, तभी उनका भी जीवन बचेगा। इसका नतीजा ये रहा था कि तत्कालीन सरकार को एक विधेयक पारित करके उस हिमालयी क्षेत्र में वनों में वृक्षों की कटाई पर लगभग डेढ़ दशक तक के लिए रोक लगानी पड़ी और वहां एक भी पेड़ नहीं काटा जा सका। वर्तमान के कृषि कानून विरोधी आंदोलन की तरह ही चिपको आंदोलन में भी महिलाओं की सक्रियता बहुत बड़े पैमाने पर थी।

Share This Video


Download

  
Report form
RELATED VIDEOS