लॉकडाउन में बच्चों के लिए मोबाइल कैसे बन रहा है जानलेवा ? ,देखिए कार्टूनिस्ट लोकेन्द्र का नजरिया

Patrika 2020-06-08

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जयपुर। कोरोना महामारी के समय दुनियाभर के देश लॉकडाउन से गुजर रहे हैं। बच्चे—बड़े सभी घर में हैं। ऐसे में बच्चे अपना ज्यादातर टाइम मोबाइल या दूसरे गैजेट के साथ बिता रहे हैं। यह किसी खतरे से कम नहीं। हाल ही में कोटा के 14 साल के बच्चे ने मोबाइल स्ट्रेस के चलते आत्महत्या कर ली। इस बच्चे ने रातभर गेम खेलने के बाद सुबह फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली। बताया जाता है कि इस बच्चे को पबजी गेम की लत थी।
पेरेंट्स रहें सतर्क
लत किसी भी चीज की बुरी होती है। ऐसी किसी भी अति से बच्चे को बचाए रखने के लिए अब पेरेंट्स को सतर्क रहने की जरूरत है। क्योंकि हर घर में मोबाइल है, ऐसे में ज्यादा समय तक बच्चे को मोबाइल से दूर रखना मुश्किल होता है। लेकिन इस मुश्किल को भी पार करना जरूरी है।
क्वालिटी टाइम की उनकी जरूरत समझें
ऐसे कितने ही बच्चे हैं, जो दिन—रात मोबाइल में गेम खेले देखे जा रहे हैं। ऐसे में पेरेंट्स सिर्फ उन्हें डांटकर अपने ही काम में व्यस्त हो जाते हैं। जबकि इस पेनडेमिक टाइम में बच्चों को भी क्वालिटी टाइम चाहिए। उनकी इस जरूरत को पेरेंट्स समझ नहीं पा रहे।
परिवार के बीच रहना सिखाएं
साइकोलॉजिस्ट की मानें तो यदि बच्चों को घर के लोगों से ही समय मिले तो वे इस मोबाइल के खतरे से बच सकते हैं। ऐसे समय में संयुक्त परिवार बच्चों के लिए खास हो जाते हैं। जब दादा—दादी, चाचा—चाची या दूसरे सदस्य उनसे बात करने के लिए उपलब्ध रहें। कोरोना ने जिंदगी में जैसे बदलाव ला दिया है, वैसे ही अब पेरेंटिंग में भी बदलाव जरूरी हैं।

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