वेता कुमारिल भट्ट का जन्म मिथिला के भट्टसिमैर नामक गाँव में पं. यज्ञेश्वर भट्ट तथा माता चंद्र्कना ( यजुर्वेदी ब्राह्मण) के यहाँ हुआ। उनके जन्मकाल के विषय में विद्वानों में बहुत मतभेद है कोई उन्हें असम राज्य से तो कोई उन्हें दक्षिण का कहते हैं इसकी पुष्टि स्वरूप यह भी कहा जाता है कि शास्तार्थ में बौद्धों का परस्त करने पर उन्हें भट्ट ( शास्तार्थ में प्रथम चरण के विजेता को उपाध्याय ,दूसरे चरण के विजेता को द्विवेदी (जिसने दो वेदों का पूर्ण अध्ययन किया हो),तीसरे चरण के विजेता को त्रिपाठी (जिसने तिन वेदों में महारत हासिल की हो) चौधे चरण के विजेता को चर्तुर्वेदी (जिसने चारों वेदों में पारंगत हासिल की हो) पांचवे चरण के विजेता को दीक्षित ( जो वेद वेदांत का ज्ञाता हो और दीक्षा देने में पारंगत हो) छटे चरण के विजेता को आचार्य की पदवी (जो कि गुरुकुल के आचार्य बन सकते हों) और अंतिम सातवें चरण के विजेता को भट्ट (वेद वेदांग तथा अन्य सभी साथ ही शास्त्रों का अध्ययन किया हो, उनकी धर्म परायणता तथा विद्वता अतार्किक हो) को ही भट्ट – पाद तथा सुब्रहमन्य की उपाधि प्रदान की जाती थी)।कुमारिल भट्ट के जन्म को ईसा की सांतवी शताब्दी में रखा जा सकता है क्यों कि कुछ विद्वान उनका काल (६२०-६८०) मानते हैं।कुछ लोग इन्हें मिथिला (उत्तर भारत)का मानते हैं और तारनाथ के अनुसार इनका काल 535वीं ईस्वी माना जाता है वहीँ कृप्पुस्वामी के अनुसार इनका काल 600 से 660 है।