ओडिशा का गजपति जिला एक साथ कई बदलावों का गवाह बन रहा है. पर्यावरण संरक्षण हो या मजदूरों के पलायन पर रोक.. महिला सशक्तिकरण हो या फिर आत्मनिर्भरता.. एक छोटे-से प्रयोग ने लोगों की जिंदगी बदल दी है.
इस बदलाव की नींव साल 1995 में पड़ी.. जब इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट एजेंसी ने यहां रबड़ के कुछ पौधे लगाए. अब तो पूरे जिले में रबड़ की खेती होने लगी है. पहले फेज में 1200 पेड़ लगाए गए. फिर ITDA और रबड़ बोर्ड ने 40 गांवों में 397 हेक्टेयर में रबड़ के पेड़ लगाए. इनमें 224 लाभुक काम कर रहे थे. तीन स्मोक हाउस में से एक काम कर रहा है.. जबकि दो पर काम चल रहा है. आदिवासी लोगों को रबड़ से फायदा मिल रहा है.
ITDA किसानों को रबड़ की खेती और रबड़ उत्पादन से जुड़ी सुविधाएं मुहैया करा रहा है. रबड़ के पौधे, स्मोक हाउस, गोडाउन जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं. साथ ही, ट्रेनिंग और मार्केटिंग की सुविधाएं भी लोगों को मुहैया कराई जा रही है. इसका नतीजा हुआ कि जो लोग काम की तलाश में दूसरे राज्यों में जाते थे.. उन लोगों को उनके गांवों में ही काम मिलना शुरू हो गया और रबड़ के उत्पादन से लाखों की आमदनी होने लगी और इससे लोगों की जिंदगी बदल रही है.