ये काम गंदा है, पर इसमें पैसा ज़बरदस्त है || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2023)

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वीडियो जानकारी: 06.12.23, अष्टावक्र गीता, ग्रेटर नॉएडा

प्रसंग:
कृत्वा मूर्तिपरिज्ञानं चैतन्यस्य न किं गुरुः।
निर्वेदसमतायुक्तया यस्तारयति संसृतेः।।

वैराग्य, समता और युक्ति के द्वारा चैतन्य के मूर्ति के ज्ञान को जानकर जो संसार से अपने को तारता है, क्या वह गुरु नहीं है?
~ अष्टावक्र गीता, श्लोक 9.6


जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बौरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठ।।
~ संत कबीर

आग लगी आकाश में, झर-झर गिरे अंगार।
न होते जो साधुजन, तो जल मरता संसार ॥
~ संत कबीर


~ अध्यात्मिक जीवन ही पूर्ण रूप से श्रेष्ठ जीवन जीने की एकमात्र राह है और ये बात समाज को स्वीकार करने की ज़रूरत है।
~ दो संसार नहीं होते, एक ही संसार होता है। संसार की सतह पर रह जाने को कहते हैं संसारिकता और संसार में ही गहरा गोता लगाने को कहते हैं अध्यात्मिकता।
~ संसार से हटने को अध्यात्मिकता नहीं कहते।
~ संसारी डूबने से डरता है।
~ बोध माने सतत जानने की क्षमता, जो सतत जानता रहे वही ज्ञानी है।


संगीत: मिलिंद दाते
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