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शब्दयोग सत्संग
१४ अप्रैल २०१७
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से
येन विश्वमिदं दृष्टं स नास्तीति करोतु वै ।
निर्वासनः किं कुरुते पश्यन्नपि न पश्यति ॥१५॥
जिसने इस विश्व को कभी यथार्थ देखा हो, वह कहा करे कि नहीं है, नहीं है, जिसे विषय वासना ही नहीं है, वह क्या करे? वह तो देखता हुआ भी नहीं देखता।
प्रसंग:
सच क्या है?
झूठ क्या है?
सच नहीं है, न झूठ ही है अष्टावक्र ऐसा क्यों बता रहें है?
खुद का नेति-नेति कैसे करें?