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वीडियो जानकारी: 24.12.23, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
कबीर भजन
"अब से खबरदार रहो भाई अब से खबरदार रहो भाई"
अब से खबरदार रहो भाई ।
गुरु दीन्हा माल खज़ाना, राखो जुगत लगाई ।
पाव रती घटने नहिं पावै, दिन दिन होत सवाई ।।
क्षमा शील की माला पहनो, ज्ञान वस्त्र लगाई ।
दया की टोपी सिर पर दे के, और अधिक बन आई ।।
वस्तु पाई गाफ़िल मत रहना, हर दिन करो कमाई ।
घट के भीतर चोर लगत हैं, बैठे घात लगाई ।।
बाहर ज्ञान रहे सिपाही, भीतर भक्ति अधिकाई ।
सुरति ज्योति हर दम सुलगे, कस कर तेल चढ़ाई ।।
~ कबीर साहब शब्दार्थ: जुगत- युक्ति; गाफ़िल- अचेतन; सुरति- ध्यान
~ हम जो कुछ भी कर रहे हैं, हमसे कौन करवाता है?
~ "मैंने किया" ये झूठ क्यों है?
~ हम कुछ भी नहीं करते तो कौन करता है?
~ इन्द्रियाँ हमें ज्ञान से दूर कैसे करती हैं?
संगीत: मिलिंद दाते
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