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वीडियो जानकारी: 03.06.24, वेदान्त संहिता, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
~ ये दुनिया किसने बनाई?
~ भगवान किसे कहा जा सकता है ?
~ ईश्वर किसे कहा जा सकता है ?
~ प्रकृति की परिभाषा क्या है?
~ क्या आशा रखना सही है?
ईश्वरः सर्वनिर्माता नेहान्य इति निश्चयी।
अन्तर्गलितसर्वाशः शान्तः क्वापि न सज्जते ॥ २ ॥
अन्वय: सर्वनिर्माता = सबका पैदा करने वाला; इह = इस संसार में; ईश्वरः = ईश्वर है; अन्य = दूसरा कोई; न = नहीं है; इति = ऐसा; निश्चयी = निश्चय करने वाला पुरुष; अंतर्गलितसर्वाशा = अन्तःकरण में गलित हो गई हैं सब आशाएँ जिसकी; शान्तः = शान्त हुआ है; क्व अपि = कहीं भी; न = नहीं; सज्जते = आसक्त होता है ।।
भावार्थ: ईश्वर ही सबका निर्माता है, दूसरा कोई नहीं हैं। जो ऐसा निश्चय कर लेता है, उसकी सारी आशाएँ भीतर ही गल जाती हैं, वह शान्त हो जाता है और उसकी आसक्ति कहीं भी नहीं होती ॥ २ ॥
~ अष्टावक्र गीता, 11.2
संगीत: मिलिंद दाते
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