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वीडियो जानकारी: पार से उपहार शिविर, 10.01.2020, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत
प्रसंग:
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया ।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥
भावार्थ : क्योंकि यह अलौकिक अर्थात अति अद्भुत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है, परन्तु जो पुरुष केवल मुझको ही निरंतर भजते हैं, वे इस माया को उल्लंघन कर जाते हैं अर्थात् संसार से तर जाते हैं।
~ (श्लोक 14, अध्याय 7, श्रीमद्भगवद्गीता)
~ मन व बुद्धि से कृष्ण का स्मरण कर इस त्रिगुणी माया पार कैसे पाएँ?
~ माया से मुक्ति कैसे मिले?
~ क्या माया भी कृष्ण का रूप पहन सकती है?
~ कृष्णत्व का अर्थ क्या है?
~ पाखण्ड से कैसे बचें?
संगीत: मिलिंद दाते
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