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वीडियो जानकारी: 16.11.2019, हार्दिक उल्लास शिविर, जिम कॉर्बेट, उत्तराखंड, भारत
प्रसंग:
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥
भावार्थ : वे ज्ञानीजन विद्या और विनययुक्त ब्राह्मण में तथा गौ, हाथी, कुत्ते और चाण्डाल में भी समदर्शी ही होते हैं ॥
~ भगवद्गीता, अध्याय ५, श्लोक १८
इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन ।
न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति ॥
भावार्थ : तुझे यह गीत का रहस्यमय उपदेश किसी भी काल में न तो तपरहित मनुष्य से कहना चाहिए, न भक्ति-रहित से और न बिना सुनने की इच्छा वाले से ही कहना चाहिए तथा जो मुझमें दोषदृष्टि रखता है, उससे तो कभी भी नहीं कहना चाहिए ॥
~ भगवद्गीता, अध्याय १८, श्लोक ६७
~ क्या गीता सबके लिए है?
~ गीता किनके लिए नहीं है?
~ ज्ञानी कौन?
~ अज्ञानी कौन?
~ समदर्शी रहना है या भेद करना है, समझ नहीं आ रहा कहना क्या चाहते हैं कृष्ण?
संगीत: मिलिंद दाते
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