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वीडियो जानकारी: 25.06.24, वेदान्त संहिता, कठ उपनिषद्, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
~ मूल से समस्या का समाधान कैसे करें?
~ क्या समस्याओं का सतही इलाज करना ठीक है?
~ मन को स्वस्थ कैसे रखें?
~ व्यर्थ विचारों से कैसे बचें?
~ जीवन में ऊँचा काम कैसे करें?
~ अपनी बेड़ियों को कैसे तोड़ें?
~ जवानी का सदुपयोग कैसे करें?
~ अपने जीवन को सार्थक कार्य में कैसे लगाएँ?
~ जीवन को ऊँचे शिखर पर कैसे ले जाएँ?
श्लोक:
श्वोभावा मर्त्यस्य यदन्तकैतत् सर्वेन्द्रियाणां जरयन्ति तेजः।
अपि सर्वं जीवितमल्पमेव तवैव वाहास्तव नृत्यगीते ॥ २६ ॥
अन्वय:अन्तक = हे यमराज! (जिनका आपने वर्णन किया, वे); श्वोभावा: = क्षणभङ्गुर भोग (और उनसे प्राप्त होने वाले सुख); मर्त्यस्य = मनुष्य के; सर्वेन्द्रियाणाम् = अन्तःकरणसहित सम्पूर्ण इन्द्रियों का; यत् तेजः = जो तेज है; एतत् = उसको; जरयन्ति = क्षीण कर डालते हैं; अपि सर्वम् = इसके सिवा समस्त; जीवितम् = आयु (चाहे वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो); अल्पम् एव = अल्प ही है (इसलिये); तव वाहाः = ये आपके रथ आदि वाहन और; नृत्यगीते = ये अप्सराओं के नाच-गान; तव एव = आपके ही पास रहें (मुझे नहीं चाहिये) ॥ २६ ॥
भावार्थ:(नचिकेता ने कहा) हे यमराज! जिन साधनों का आपने वर्णन किया है , वे क्षणभंगुर हैं। साथ ही ये मनुष्य की इन्द्रिय-सामर्थ्य को भी क्षीण कर डालते हैं। इसके सिवा जीव की आयु कितनी भी दीर्घ हो, वह कम ही है। (अतः) रथादि वाहन एवं (अप्सराओं के) नाच-गान आपके ही पास रहें अर्थात् मुझे इनकी कोई कामना नहीं ॥ २६ ॥
~ कठोपनिषद 1.1.26
संगीत: मिलिंद दाते
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