वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
१८ मई २०१४,
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
दोहा:
बूड़ा था पै ऊबरा, गुरु की लहरि चमंकि |
भेरा देख्या जरजरा, (तब) ऊतरि पड़े फरंकि || (संत कबीर)
प्रसंग:
इच्छा माने क्या ?
क्या संसार की दौड़ से इच्छाओं को तृप्त किया जा सकता है?
इच्छा की वास्ताविक खोज क्या है?