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वीडियो जानकारी: अद्वैत बोध शिविर, 25.04.2020, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत
प्रसंग:
इदमिदमिति तृष्णयाऽभिभूतं जनमनवाप्तधनं विषीदमानम् ।
निपुणमनुनिशम्य तत्त्वबुद्ध्या व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि ॥
जो यह मिले, वह मिले- इस प्रकार तृष्णा से दबे रहते हैं और धन न मिलने के कारण निरंतर विषाद करते हैं, ऐसे लोगों की दशा अच्छी तरह देखकर तात्विक बुद्धि से सम्पन्न हुआ मैं पवित्रभाव से इस आजगरव्रत का आचरण करता हूँ।
~ आजगर गीता (श्लोक-28)
अपगतभयरागमोहदर्पी धृतिमतिबुद्धिसमन्वितः प्रशान्तः।
उपगतफलभोगिनो निशम्य व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि ॥
मेरे भय, राग, मोह, और अभिमान नष्ट हो गये हैं। मैं धृत, मति और बुद्धि से सम्पन्न एवं पूर्णतया शांत हूँ और प्रारब्धवश स्वतः अपने समीप आई हुई वस्तु का ही उपभोग करने वालों को देखकर मैं पवित्र भाव से इस आजगर व्रत का आचरण करता हूँ।
~ आजगर गीता (श्लोक-31)
अपगतमसुखार्थमीहनार्थे रुपगतबुद्धिरवेक्ष्य चात्मसंस्थम्।
तृषितमनियतं मनो नियन्तुं व्रतमिदमाजगरं शुचिश्चरामि ॥
जिनका परिणाम दुःख है, उन इच्छा के विषयभूत समस्त पदार्थों से जो विरक्त हो चुका है, ऐसे आत्मनिष्ठ महापुरुष को देखकर मुझे ज्ञान प्राप्त हो गया है। अत: मैं तृष्णा से व्याकुल असंयत मन को वश में करने के लिए पवित्रभाव से इस आजगर-व्रत का आचरण करता हूँ।
~ आजगर गीता (श्लोक-33)
~ जीवन के अनुभव से कैसे सीखें?
~ जीवन को गुरु कैसे बनाएँ?
~ गुरु से सीखें या जीवन के अनुभवों से?
~ क्या हम गुरु को स्वयं चुनते हैं?
संगीत: मिलिंद दाते
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