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वीडियो जानकारी: पार से उपहार शिविर, 17.04.20, ग्रेटर नॉएडा, भारत
प्रसंग:
अतः कथज्चित्स विमुक्त आपदः पुनश्चय सार्थ प्रविशत्यरिन्दम।
अध्वन्यमुष्मिननजया निवेशितो भ्रमज्जनोउद्याप न वेद कश्चन॥
भावार्थ: शत्रु दमन ! यदि किसी प्रकार इसे उस आपत्ति से छुटकारा मिल जाता है तो यह फिर अपने गोल में मिल जाता है।
जो मनुष्य मायाकी प्रेरणा से एक बार इस मार्ग में पहुँच जाता है, उसे भटकते-भटकते अन्ततक अपने परम पुरुषार्थ
का पता नहीं लगता।
~ परमहंस गीता (अध्याय ४, श्लोक १९ )
~ मनुष्य संसार क्यों आता हैं?
~ मनुष्य जीवन में क्यों भटकता है?
~ माया के जाल से कैसे बचे?
~ मनुष्य संसार में फंसा ही क्यों?
~ कामनाओ से मुक्ति कैसे मिले?
संगीत: मिलिंद दाते
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