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#acharyaprashant
वीडियो जानकारी: 03.02.24, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा
प्रसंग:
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः ।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ।।९।।
अर्जुन, मेरे इस प्रकार दिव्य जन्म और कर्म को जो यथार्थ रूप से जानते हैं (माने ठीक-ठीक समझ गए कि मैं कौन हूँ और मैं क्या करता हूँ), जो लोग ये बात ठीक से समझ गए वे देह छोड़कर बार-बार जन्म नहीं लेते, वो तो मुझे ही प्राप्त कर लेते हैं।
काव्यात्मक अर्थ:
वो बाहर नहीं जन्मेंगे कहीं
आस ये अवरुद्ध करो
हरि भीतर ही प्रकटेंगे अभी
यदि स्वयं से तुम युद्ध करो
कृष्ण के जन्म का क्या अर्थ है? अपने ही अहंकार को काटना I
जीव को सबसे बड़ा धोखा ये होता है, कि उसको बचाने वाला, या उसका आराध्य, उसका सहारा, उसका तारणहार कहीं बाहर से आने वाला है I
हमारी जो पूरी शिक्षा है, आंतरिक प्रशिक्षण है, वो hero worship का हो चुका है। हम स्वयं में विश्वास नहीं रखते I
महानता को अपने से बाहर स्थापित करना न सिर्फ एक कुटिल चाल है बल्कि आत्मघाती चाल है।
एक बात बहुत भीतर तक उतर जाने दीजिये कोई नहीं आने वाला, कोई नहीं सहारा देने वाला, किसी के भरोसे नहीं बैठ सकते।
भगत सिंह सबको चाहिए पर पड़ोस के घर में।
भारत में हमने कहा अगर किसी से द्वेष हो गया है तो उसको महापुरुष घोषित कर दो।
कैसे ऊँचा उठा जाता है– अपने भीतर उसको काट कर जो निचाई का पक्षधर है।
साधु रण में जूझकर टूटन दे अहंकार
जग की मरनी क्यों मरें दिन में सौ सौ बार।
संगीत: मिलिंद दाते
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