वीडियो जानकारी:
प्रसंग:
अविद्योपाधिः सन् आत्मा जीव इत्युच्यते।
मायोपाधिः सन् ईश्वर इत्युच्यते।
तस्मात्कारणान्न जीवेश्वरयोर्भेदबुद्धिः स्वीकार्या। ~ तत्वबोध
भावार्थः
अविद्या उपाधि से युक्त आत्मा को जीव कहते हैं।
माया उपाधि से युक्त आत्मा को ईश्वर कहते हैं।
इसलिए जीव-ईश्वर में भेदबुद्धि को स्वीकार नहीं करना चाहिए।
~ ईश्वर और जीव का क्या संबंध है?
~ शरीर और कर्मों के इतने विभाजन क्यों हैं?
~ 'जीव-ईश्वर में भेदबुद्धि को स्वीकार नहीं करना चाहिए' से क्या आशय है?
संगीत: मिलिंद दाते
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