आज की कहानी “आधे घंटे का ख़ुदा है” जिसमे एक लड़की मोगरी जो बेहद खूबसूरत है वो बिना किसी को बताये जंगल छोड़कर दूसरी जगह एक लड़के से मिलने के लिए आती है।
वहां वो वो लड़का मोगरी के साथ किसी और साज़िश को अंजाम देने बैठा था। फिर अचानक उस रात जब वो और मोगरी अकेले एक कमरे में थे उस वक़्त क्या होता है। और कैसे वो लड़का कुछ घंटों के फासले से बचकर भाग जाता है, इस कहानी में बताया गया है।
कृश्न चंदर उर्दू फ़िक्शन की वो क़द्दावर शख़्सियत हैं जिनकी कला में विविधता, रंगारंगी, ताज़गी, रूमानियत, वास्तविकता, विद्रोह, हास्य और व्यंग्य सभी कुछ शामिल है जबकि रूमानी यथार्थवाद उनकी विशिष्टता है। कृश्न चंदर ने अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से प्रगतिशील साहित्य का नेतृत्व किया और उसे विश्व मंच तक पहुंचा दिया। कृश्न चंदर 23 नवंबर 1914 को राजस्थान के शहर भरतपुर में पैदा हुए उन्होंने दर्जनों उपन्यास और 500 से अधिक कहानियां लिखीं। उनकी रचनाओं के अनुवाद दुनिया की विभिन्न भाषाओँ में हो चुके हैं। कृश्न चंदर के पास एक शायर का दिल और एक चित्रकार का क़लम है। उनके विषय हिन्दुस्तानी ज़िंदगी और उसके मसाइल के आसपास घूमते हैँ। उर्दू अफ़सानों में रूप के संदर्भ में कृश्न चंदर ने नित नए प्रयोग किए हैँ। उन्होंने अफ़साना और स्केच के संयोजन से उर्दू अफ़साना निगारी में एक नई तरह डाली और उसे अपनी अनूठी शैली के द्वारा अफ़साना निगारी में एक नए स्कूल की स्थापना की। कहानियों और उपन्यासों के अतिरिक्त उन्होंने रेखाचित्र, निबंध, टिप्पणियां और रिपोर्ताज़ भी लिखे जिन सब पर उनकी विशेष छाप मौजूद है।
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