बीत रहा हफ़्ता रंगों के त्यौहार ‘होली’ के उल्लास में डूबा रहा. इस बीच तमाम घटनाएं अप्रभावित अपनी गति से घटती रहीं. तमाम चिंताजनक वारदातों से अप्रभावित प्रधानमंत्री के कार्यक्रम वक़्त और तारीख़ में बिना किसी फेरबदल के आयोजित होते रहे. ऐसे में नज़ीर अकबराबादी का होली पर लिखा गीत ‘होली की बहारें’ बेहद मानीखेज़ है. उनके लिए फिराक़ गोरखपुरी लिखते हैं कि नज़ीर दुनिया के रंग में रंगे हुए महाकवि थे. वे दुनिया में रहते थे और दुनिया उनमें रहती थी, जो उनकी कविताओं में हंसती-बोलती, जीती-जागती त्यौहार मनाती नज़र आती है. गीत के कुछ अंश इस प्रकार हैं-
“जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की
ख़ुम, शीशे, जाम झलकते हों तब देख बहारें होली की.”
अनिल यादव गीत के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ऐसे वक़्त में जब सांप्रदायिक आधारों पर समाज को बांटने की कोशिशें बदस्तूर जारी हैं, यह गीत इस लिए भी सुना/ पढ़ा जाना चाहिए क्योंकि इससे पता चलता है कि हमारी साझी संस्कृति का रंग कितना गहरा है.
रंगों के त्यौहार पर संक्षिप्त बातचीत व गीत के ज़िक्र के बात चर्चा के विषयों की ओर लौटना हुआ. इस हफ़्ते की चर्चा में भारतीय जनता पार्टी के लोकसभा उम्मीदवारों की पहली सूची जारी हुई जिसमें वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी का नाम नहीं होने के बाद अब उनके राजनीतिक अवसान, पंजाब नेशनल बैंक से तकरीबन 13000 करोड़ रूपये के गबन के बाद देश से फरार चल रहे नीरव मोदी की लंदन में हुई गिरफ़्तारी, पत्रकार बरखा दत्त को गालियां देने व जान से मारने की धमकी देने वाले कुछ लोगों को पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने, न्यूज़ीलैण्ड में मस्जिदों में घुसकर दो बन्दूकधारियों द्वारा तकरीबन 50 लोगों की हत्या की आतंकवादी घटना, प्रधानमंत्री के चुनावी अभियान ‘मैं भी चौकीदार’ और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की सीक्रेट डायरी प्रकाश में आने, उससे सामने आ रहे तथ्यों को चर्चा में विशेष तौर पर लिया गया.
चर्चा में इस बार लेखक-पत्रकार अनिल यादव व न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन शामिल हुए. चर्चा का संचालन हमेशा की तरह न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
कर्नाटक के डायरी-प?