वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग
१७ सितम्बर, २०१४
अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा
दोहा:
पहिले दाता शिष भया, तन मन अरपा सीस।
पाछे दाता गुरु भये, नाम दिया बक्सीस॥
दूसरों तक प्रकाश कैसे पहुंचाएं? भीतर उपलब्ध दिव्य ज्योंति से दूसरों को कैसे प्रकाशित करें?
प्रसंग:
"जितना बँटेगा उतना बढ़ेगा" संत कबीरदास किस चीज बाँटने को बोल रहे है?
क्या है जो पूर्ण है?
क्या ऐसा है जो बाँटने से भी हमारा नहीं घटेगा बल्कि उतना ही बढ़ेगा?
संत कबीरदास पहले दाता शिष्य को क्यों बता रहें है?