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शब्दयोग सत्संग
३ नवम्बर, २०१३
अद्वैत बोधस्थल, नोएडा
अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।
स सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥
(श्रीमदभगवद्गीता,अध्याय ६, श्लोक १)
शब्दार्थ: श्री भगवान बोले- जो पुरुष कर्मफल का आश्रय न लेकर करने योग्य कर्म करता है, वह संन्यासी तथा योगी है और केवल अग्नि का त्याग करने वाला संन्यासी नहीं है तथा केवल क्रियाओं का त्याग करने वाला योगी नहीं है॥
Meaning: The Lord of Sri said, ‘One who does his duties properly and renounces the fruit of his action is both a renunciate and a yogi. It is not possible to become a sanyasi merely by forgoing work and sacrificial fire.
प्रसंग:
कौन सा कर्म सही है?
कर्तव्य का अर्थ क्या है?
श्रीकृष्ण का कर्मयोग क्या है?
संगीत: मिलिंद दाते