मैं मारिच। कैकसी का भाई। ताड़का और सुंद का पुत्र। लंकापति रावण का मातुल। दशानन को त्रिलोक विजयी बनाने में जिन लोगों का सहयोग है, उनमें से एक मैं भी हूं। मेरी रणनीति और सलाह हमेशा लंकेश के लिए महत्वपूर्ण रही। दंडकारण्य में जब विश्वामित्र के यज्ञभंग के दौरान राम ने अपने बाणों से मुझे सागर पार फेंक दिया था, तब से राक्षस कर्मों को त्यागकर मैं खुद तप में रम गया। लंकेश ने राम की पत्नी के हरण के लिए युक्ति मांगी, क्योंकि राम ने शूर्पणखा का अपमान किया। मैंने लंकेश को समझाया था कि मानव जाति से बैर ना ले, विशेषतः राम से। राम का पराक्रम में देख चुका था। लेकिन लंकेश नहीं माना।
परिणाम...। मैं पंचवटी में राम की पर्णकुटी के आगे स्वर्ण मृग बना घूम रहा हूं। सीता ने राम से स्वर्ण मृग मांगा। राम समझा रहे हैं, लेकिन जैसे-जैसे राम सीता को समझाते जा रहे हैं, मैं अपनी देह की स्वर्णिम चमक बढ़ा रहा हूं। सीता के आगे राम हार गए। लक्ष्मण को सीता की रक्षा के लिए रख छोड़ा। स्वयं मेरे पीछे आ गए। मैं चपलता और माया से तेजी से उन्हें दूर तक ले आया। राम ने बाण चलाया और मैं धरा पर आ गया। प्राण पखेरु उड़ने को थे, मैं मायावी रुप में चिल्लाया लक्ष्मण, लक्ष्मण रक्षा करो। मैं जानता था, सीता लक्ष्मण को राम की सहायता के लिए भेजेंगी। हुआ भी वही। लक्ष्मण एक सुरक्षा रेखा बनाकर वन में आ गए। राम को खोजने। रावण इसी क्षण की प्रतिक्षा में था।
सुरक्षा रेखा पार कर साधु बने रावण को सीता भिक्षा देने आई। रावण ने संतों का रक्तपात करके उन्हें पीड़ा तो पहुंचाई ही थी। आज उसने साधु के रुप में सीता का हरण करके पूरे साधु समाज के प्रति एक आशंका को जन्म भी दे दिया। मैं अपने प्राणों के शरीर से निकलने की प्रतिक्षा कर रहा हूं, राम का मारा बाण बूंद-बूंद कर मेरे शरीर से बाहर निकल रहा है। जंगल में सीता-सीता की आवाजें गूंज रही हैं। राम और लक्ष्मण चारों दिशाओं में विलाप करते सीता को खोज रहे हैं। अपनी मायावी दृष्टि से देख रहा हूं कोई बड़ा पक्षी सीता को बचाने के लिए आकाश में रावण से लड़ रहा है। घायल शरीर से वो पुरजोर रावण पर वार कर रहा है। दशानन रावण ने उसके पंख काट दिए। वो तेजी से सीता को लेकर आगे बढ़ रहा था। सीता प्रलाप कर रही थी। राम-लक्ष्मण सीता को खोज रहे थे।
इस दंडकारण्य में कई पाप होते देखे हैं लेकिन आज जो हो रहा था, उसमें मुझे दशानन के अंत की आहट सुनाई दे रही थी। सीता का प्रलाप लंका की स्त्रियों के विलाप में बदलने वाला था। कोई समझे या ना समझे, मैं समझ पा रहा हूं। रावण के दादा पुलत्स्य ऋषि ने कहा था, रावण का यह दंभ उसके काल का कारण बनेगा। बल का अहंकार चरम पर था। इन्हीं पुलत्स्य ऋषि ने सहस्त्रबाहु अर्जुन के कारागृह से रावण का मुक्त कराया था।
इन्हीं पुलत्स्य के पुत्र कुबेर को जब रावण ने लंका से निकाला था, तो ब्रह्म देव ने उसे भगवान शिव की शरण लेने को कहा था। ब्रह्म देव ने ही कुबेर से कहा था कि स्वयं नारायण नर अवतार में आएंगे, रुद्र वानर अवतार लेंगे। वानर जाति की सहायता से नारायण का नरावतार रावण का अंत करेंगे। दंडकारण्य में लंका के पहले वानरों का साम्राज्य किष्किंधा ही आता है। जहां महाबलि वानर राज बाली का शासन है। वहां कई शूरवीर वानर हैं। और हमेशा राम का नाम जपने वाला हनुमान भी वहीं है। सुग्रीव का सबसे विश्वसनीय मंत्री, बुद्धि और बल का अद्भुत संगम है हनुमान…