भगवद गीता - अध्याय २ - पद १९ और २० - इस वीडियो में देखिए की भगवान कृष्ण अर्जुन को आत्मा का सखोल ज्ञान कैसे देते है
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१ उन्नीसवां श्लोक इस प्रकार है :
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।१९।।
२ इस श्लोक का अर्थ है :
जो आत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसको मरा हुआ समझता है, वे दोनों ही अज्ञानी है, क्योंकि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारती है और न किसी द्वारा मारी जाती है।
३ भगवान कृष्ण ने उन्नीसवें श्लोक में यह कहा की वास्तव में कोई भी किसी को मार नहीं सकता। बिसवां श्लोक इस प्रकार है
न जायते म्रियते वा कदाचि-न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो-न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।।२०।।
४ इस श्लोक का भावार्थ है:
यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्म लेती है और न मरती है और न ही जन्म लेगा, यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारी जा सकती है।
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