भगवद गीता के दो महत्वपूर्ण श्लोक | अर्था । आध्यात्मिक विचार

Artha 2019-02-05

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इस विडियो में देखिए भगवद गीता के सबसे शक्तिशाली और प्रतिष्ठित दो श्लोक

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1 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥

2 इस श्लोक का अर्थ है :
जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होगी, उस समय,
मैं अपने आप को खुद प्रकट कर दूंगा या फिर मैं खुद आऊंगा
भक्तों की सुरक्षा के लिए, दुष्टों का पूर्ण विनाश करने के लिए,
और धर्म स्थापित करने के लिए, युग उपरांत युग में प्रकट होऊंगा

3 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोस्त्व कर्मणि ॥

4 इस श्लोक का अर्थ है :
आपको वास्तव में कार्य और गतिविधियों को करने का अधिकार है
लेकिन कभी भी इसके परिणाम के लिए नहीं ।
आपको किये गये कार्य के परिणामों से प्रेरित नहीं होना चाहिए,
न ही कार्य ना करने से कोई लगाव होना चाहिए।

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