साधु, संत एवं सिद्ध पुरुष में क्या भिन्नता है ? | अर्था | आध्यात्मिक विचार

Artha 2019-02-05

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साधु, संत एवं सिद्ध पुरुष में क्या भिन्नता है? | Artha

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१ साधु , संत एवं सिद्ध पुरुष की सभी धर्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाऐं है
२ हमारे प्राचीन ग्रंथो में, इन पवित्र पुरूषों के सम्बन्ध में कई घटनाएँ मौजूद है । किन्तु प्रश्न है कि साधु ,संत एवं सिद्ध पुरुष इन तीनो में क्या भिन्नता है ?
३ साधु का अर्थ है "शांत एवं सौम्य", जो की सदैव सत्य की राह पर चलता है
४ साधु हिन्दू धर्म के उपदेषक बन कर, धर्म का प्रसार करने हेतु सन्यासियों की तरह भटकते रहते हैं
५. साधु , शहरों एवं नगरों में सड़को के किनारे भिक्षा पात्र लिए देखे जाते है
६. वह हिंदुओं के द्वारा सम्मानित किये जाते है, और उनके आशीर्वाद के बदले उन्हें भोजन दिया जाता है
७. संत वह होता हैं जिसके भितर ज्ञानरूपी ऊर्जा का वास होता है
८. संत एक संस्कृत शब्द है, इसे पारंपरिक रूप से संत कवियों के साथ जोड़ा जाता है
९. हिन्दू धर्म में विविध पार्श्वभूमि के संतों को देखा गया है , जैसे अंधे - सूरदास, तुलसीदास, गोद लिए हुए - कबीर, पहले अपराधी रह चुके - वाल्मीकि, भूतपूर्व रखैल कान्होपात्रा एवं शतकोपा
१० शिरडी के साई बाबा को भारत में बीसवीं शताब्दी के, सभी सन्तों में सबसे महान संत माना जाता है
११. सिद्ध पुरुष आध्यात्मिक नहीं होते, यह वो होते है जो जीवन एवं ब्रम्हांड की घटने वाली घटनाओं के रहस्य को पहले बता देते है
१२.सिद्ध पुरुष वो होते है जो अपने उच्चतम अनुभूति के आधार पर चीज़ो को देखते है, जिसे एक सामान्य व्यक्ति नहीं देख सकता

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