वट सावित्री व्रत – पूजा की विधि और कथा - vat savitri puja 2017 Katha aur Labh\r
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वट सावित्री व्रत का महत्व –\r
कहते हैं कि सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को दर्शाता यह व्रत ‘वट और ‘सावित्री दोनों का विशिष्ट महत्व व्यक्त करता है। यह तो आप जानते ही होंगे कि पीपल कि भांति वट वृक्ष को भी हिंदु धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। जान लें कि धर्म ग्रंथों में वट वृक्ष के भीतर ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास माना गया है तथा इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।\r
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वेद संसार आज आपको वट सावित्री व्रत के पीछे की कहानी – सत्यवान सावित्री की यमराज सहित पूजा होती है\r
आपको शायद यह मालुम नहीं होगा कि इस दिन सत्यवान सावित्री की यमराज सहित पूजा की जाती है। ऐसा मानना है कि जो स्त्री यह व्रत करती है उसका सुहाग अचल रहता है। बता दें कि सावित्री ने इसी व्रत को कर अपने मरे हुए पति सत्यवान को धर्मराज से जीत लिया था। इस दिन उपवासक को सुवर्ण या मिट्टी से सावित्री-सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यमराज कि प्रतिमा बनाकर धूप-चन्दन, फल, रोली, केसर से पूजन करना चाहिए. तथा सावित्री-सत्यवान कि कथा भी ज़रूर सुननी चाहिए।\r
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वट सावित्री व्रत की पूरी कथा –\r
सावित्री भारतीय संस्कृति में जानी जाने वाली महान ऐतिहासिक चरित्र हुई हैं। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में ही हुआ था। कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए अनेक वर्षों तक तप किया जिससे प्रसन्न हो देवी सावित्री ने प्रकट होकर उन्हें पुत्री का वरदान दिया जिसके फलस्वरूप राजा को पुत्री प्राप्त हुई और उस कन्या का नाम सावित्री ही रखा गया।\r
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सावित्री सभी गुणों से संपन्न कन्या थी जिसके लिए योग्य वर न मिलने के कारण सावित्री के पिता दुःखी रहने लगे एक बार उन्होंने पुत्री को स्वयं वर तलाशने भेजा इस खोज में सावित्री एक वन में जा पहुंची, जहां उसकी भेंट साल्व देश के राजा द्युमत्सेन से हो जाती है। द्युमत्सेन उसी तपोवन में रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। सावित्री ने उनके पुत्र सत्यवान को देखकर उन्हें पति के रूप में वरण क