भ्रष्ट व्यवस्था, मजबूरी की नौकरी, टूटे हुए सपने - ऐसे बर्बाद होती है जवानी || आचार्य प्रशांत (2024)

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वीडियो जानकारी: 12.04.24, वेदान्त संहिता, ग्रेटर नॉएडा

भ्रष्ट व्यवस्था, मजबूरी की नौकरी, टूटे हुए सपने - ऐसे बर्बाद होती है जवानी || आचार्य प्रशांत (2024)

📋 Video Chapters:
0:00 - Intro
1:27 - आपदा के समय की संवेदनशीलता(Empathy)
7:58 - भ्रष्टाचार और व्यवस्था
19:17 - संवेदनशीलता और मानवता
25:16 - हम अपने ही हाथों श्रापित हैं
32:14 - इंसान को इंसान बनना पड़ता है
36:20 - संस्था की शुरुआत के दिनों की एक कहानी
38:50 - कबीर साहब के दोहे और भजन
39:31 - समापन

विवरण:
इस वीडियो में आचार्य जी ने मानवता की मूल प्रवृत्तियों और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार पर गहन चर्चा की है। एक श्रोता ने अपने अनुभव साझा किए, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे आपदाओं के समय में लोगों में एकता और सहानुभूति का भाव होता है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है, यह भावना कम होती जाती है। आचार्य जी ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि बाहरी परिस्थितियों का प्रभाव हमारे आंतरिक मूल्यों को नहीं बदल सकता।

उन्होंने उदाहरण दिया कि जब कोई व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार होता है, तो उसकी देखभाल करने वाले लोग कितनी मेहनत करते हैं, लेकिन जैसे ही वह व्यक्ति ठीक होता है, उसकी प्राथमिकताएं फिर से भौतिक चीजों की ओर मुड़ जाती हैं। आचार्य जी ने यह भी बताया कि समाज में भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण यह है कि लोग अपने भीतर के खालीपन को भरने के लिए बाहरी चीजों का सहारा लेते हैं।

आचार्य जी ने यह स्पष्ट किया कि वास्तविक परिवर्तन भीतर से आना चाहिए, न कि बाहरी वस्तुओं के माध्यम से। उन्होंने कहा कि जब तक हम अपने भीतर की स्थिति को नहीं बदलते, तब तक बाहरी चीजें हमें संतोष नहीं दे सकतीं। अंत में, उन्होंने यह भी बताया कि समाज में जो भी बदलाव लाना है, वह आंतरिक जागरूकता और आत्मज्ञान के माध्यम से ही संभव है।

प्रसंग:
~ भारतीय लोग ताकत के सामने आसानी से झुक क्यों जाते हैं?
~ क्यों कहा जाता है, जैसे आप वैसे आपका नेता?
~ क्यों आज भी भारत में जो फंड्स सड़क बनाने के लिए आते हैं सरकार उनका इस्तेमाल नहीं करती?
~ वोट देने का अधिकार शिक्षित लोगों को क्यों होना चाहिए?
~ हमारी कमी है कि हम शिक्षित नहीं है, जिसकी वजह से हमारा जो चुनाव है वो भी गलत ही होता है
~ भारत में जब तक शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ेगा, तब तक लोकतंत्र असफल ही रहेगा!

संगीत: मिलिंद दाते
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