श्री ब्रह्मा विष्णु महेश कथा का आरंभ सती कौशिकी से होता है जिसका विवाह एक मुनि कुमार कौशिक से होने वाला था और वह कार्तिक पूजा के समय आश्रम की अन्य कुंवारी कन्याओं के साथ अपने होने वाले पति की कामना से माता कात्यायनी की पूजा कर रही थी |
श्री ब्रह्मा विष्णु महेश ऐसा कहने से लगता है जैसे यह तीन अलग-अलग देव अथवा शक्तियां हैं परंतु यह सत्य नहीं है वास्तव में यह तीनों एक ही शक्ति के तीन रूप हैं असल में एक ही परम ब्रह्म परमात्मा है जिसकी इच्छा अथवा संकल्प से इस जगत की सृष्टि होती है उस सृष्टि का पालन होता है और फिर उसी सृष्टि का संघार हो जाता है एकमत ए भी है कि सारा संसार एक माया है यह उत्पत्ति का पालन या फिर सारा नाटक केवल माया का भ्रम है जैसे स्वप्न में देखा हुआ सत्य नहीं होता उसी प्रकार यह सारा संसार मिथ्या है केवल स्वप्न मात्र है |
सती कौशिकी गौरी मां से आशीर्वाद मांगती है कि हे गौरी मां मुझे आशीर्वाद दो की जिनसे मेरे पिता जी मेरा सम्बंध निश्चित किया है मैं सदा उनकी सेवा करूं वह सदा सुखी रहे स्वस्थ रहें स्वप्न में भी मेरे मन में किसी का ध्यान ना आए मैं अपने सत्य के मार्ग पर अडीग रहूँ उधर कौशिकी के पिता ये सब देखकर दुःखी एवं चिंतित हो जाते हैं क्योंकि जिनकी कौशिकी आशीर्वाद मांग रही हैं ओ कोढ़ी हैं तो उनसे विवाह नहीं करना चाहते हैं उनके पिता तबकब कोशिकी आ जाती है और देखती हैं कि माता पिता रो रहे हैं तो पूछने पर बोलते हैं कि बेटी जिनसे विवाह करना चाहती हो उन्हें कुष्ट रोग हो गया और ओ तुमसे विवाह नहीं करना चाहते हैं तब कौशिकी का कहना है कि मैंने तो उन्हें अपना पति मान लिया है और चाहे जैसे भी हैं मैं उन्ही से विवाह करना चाहती हूं सेवा करना चाहती हूँ ये एक सती की कहना है और मिलकर विवाह कर लेते हैं एक दूसरे से कौशिक और सती कौशिकी I