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वीडियो जानकारी: 09.04.24, वेदान्त संहिता, ग्रेटर नोएडा
प्रसंग:
कठोपनिषद, श्लोक 1.1.21
देवैरत्रापि विचिकित्सितं पुरा न हि सुविज्ञेयमणुरेष धर्मः ।
अन्यं वरं नचिकेतो वृणीष्व मा मोपरोत्सीरति मा सृजैनम् ॥ २१ ॥
नचिकेतः = हे नचिकेता; अत्र पुरा = इस विषय में पहले; देवैः अपि = देवताओं ने भी; विचिकित्सितम् = संदेह किया था (परंतु उनकी भी समझ में नहीं आया); हि एषः धर्मः अणुः = क्योंकि यह विषय बड़ा सूक्ष्म है; न सुविज्ञेयम् = सहज ही समझ में आने वाला नहीं है (इसलिए); अन्यम् वरम् वृणीष्व = तुम दूसरा वर माँग लो; मा मा उपरोत्सीः = मुझपर दबाव मत डालो; एनम् मा=इस आत्मज्ञान सम्बन्धी वरको मुझे ; अतिसृज = लौटा दो ॥ २१ ॥
(यम ने कहा-) हे नचिकेता ! पूर्व काल में देवताओं ने भी इस आत्मा के विषय में संशय किया था । निश्चित ही यह आत्मतत्त्व नामक धर्म (विषय) सरलतापूर्वक जानने योग्य नहीं है । हे नचिकेता ! तुम मुझसे कोई अन्य वर माँग लो, इस वर से हमें मुक्त कर दो ॥ २१ ॥
संगीत: मिलिंद दाते
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