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वीडियो जानकारी:
शब्दयोग सत्संग, 30.03.20, अद्वैत बोध शिविर, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत
प्रसंग:
~पिंगलागीता (श्लोक २७, ३१)
पुत्रनाशे वित्तनाशे ज्ञातिसंबन्धिनामपि।
प्राप्यते सुमहद्दुःखं दावाग्निप्रतिमं विभो।
दैवायत्तमिदं सर्वं सुखदुःखे भवाभवौ॥ २७॥
भावार्थ: प्रभों! यहां सब लोगों को पुत्र, धन, कुटुम्बी तथा संबंधियों का नाश होने पर दावानल के समान दाह उत्पन्न करने वाला महान दु:ख प्राप्त होता है। परंतु सुख–दुःख और जन्म–मृत्यु आदि यह सब कुछ प्रारब्ध के ही अधीन है।
बुद्धिमन्तं च शूरं च मूढं भीरुं जडं कविम्।
दुर्बलं बलवन्तं च भागिनं भजते सुखम्॥३१॥
बुद्धिमान, शूरवीर, मूढ़, डरपोक, गूंगा, विद्वान, दुर्बल और बलवान जो भी भाग्यवान होगा- दैव जिसके अनुकूल हेागा, उसे बिना यत्न के ही सुख प्राप्त होगा।
~ प्रारब्ध क्या है?
~ क्या सुख-दुःख भाग्य पर निर्भर होता है?
~ भाग्य का क्या अर्थ है?
~ प्रारब्ध का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
संगीत: मिलिंद दाते
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