संसार की नश्वरता समझ नहीं आती? || आचार्य प्रशांत, हंस गीता पर (2020)

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वीडियो जानकारी: शास्त्र कौमुदी लाइव, 17.05.2020, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत

प्रसंग:
ईक्षेत विभ्रममिदं मनसो विलासं दृष्टं विनष्टमतिलोलमलातचक्रम्‌।
विज्ञानमेकमुरुधेव विभाति माया स्वप्नस्त्रिधा गुणविसर्गकृतो विकल्प:॥
यह जगत्‌ मन का विलास है, दीखने पर भी नष्टप्राय है, अलातचक्र (लुकारियों की बनेठी )-के समान अत्यन्त चंचल है और भ्रम मात्र है-- ऐसा समझे। ज्ञाता और ज्ञेय के भेद से रहित एक ज्ञानस्वरूप आत्मा ही अनेक-सा प्रतीत हो रहा है।
~हंस गीता (श्लोक-34)

~ क्या संसार झूठ है?
~ संसार की नश्वरता को कैसे जाने?
~ क्या हम इस दुनिया में अकेले है?

संगीत: मिलिंद दाते
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