वीडियो जानकारी: शब्दयोग सत्संग, 14.09.2019, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा, भारत
प्रसंग:
महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्यम् ॥
भावार्थ : परंतु हे कुन्तीपुत्र! दैवी प्रकृति के आश्रित महात्माजन मुझको सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षरस्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरंतर भजते हैं॥
~ हमारी मूल आवश्यकता क्या है?
~ हम प्रकृति पर आश्रित क्यों हैं?
संगीत: मिलिंद दाते
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