ये सब जो ज़िंदगी में भरा हुआ है, ज़रूरी है क्या? (व्यर्थ को पहचानें और हटाएँ) ||आचार्य प्रशांत(2023)

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वीडियो जानकारी:

प्रसंग:
आचार्य जी नीचे दिया भजन समझा रहे है।

रैन दिवस पिय संग रहत हैं
रैन दिवस पिय संग रहत हैं,
मैं पापिन नहिं जाना ॥

मात पिता घर जन्म बीतिया,
आया गवन नगिचाना।
आजै मिलो पिया अपने से,
करिहो कौन बहाना ॥ १ ॥

मानुष जनम तो बिरथा खोये,
राम नाम नहिं जाना।
हे सखि मेरो तन मन काँपै,
सोई शब्द सुनि काना ॥ २ ॥

रोम-रोम जाके परकाशा,
कहैं कबीर सुनो भाई साधो,
करो स्थिर मन ध्याना ॥ ३ ॥

~ कबीर साहब

शब्दार्थ: रैन दिवस- रात दिन; गवन- संसार से जाने की दशा; नगिचाना: निकट आना; विरथा- व्यर्थ


संगीत: मिलिंद दाते
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