बौद्ध भिक्षुओं के शव के क्‍यों किए जाते हैं टुकड़े, कैसे होता है अंतिम संस्‍कार? | बलिदान सिंह बौद्ध

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दुनियाभर में अलग धर्मों के लोग अलग तरीकों से अंतिम संस्‍कार करते हैं. हिंदुओं में जहां दाह संस्‍कार की प्रथा है तो मुस्लिम शवों को दफनाते हैं. जानते हैं कि बौद्ध धर्म में संतों का अंतिम संस्‍कार किस तरह किया जाता है.
दुनियाभर में रहने वाले अलग-अलग धर्म के अनुयायी अपने-अपने तरीके से जीवन जीते हैं. लोग अपने धर्म या संप्रदाय में सदियों से चली आ रही परंपराओं और प्रथाओं के हिसाब से ही नामकरण, शादी-विवाह और दूसरे संस्‍कार करते हैं. वहीं, मृत्‍यु के बाद अंतिम संस्‍कार की भी सबकी अपनी-अपनी परंपराएं हैं. समय के साथ कुछ परंपराओं को लोगों ने बदल दिया, लेकिन कुछ आज भी जस की तस निभाई जाती हैं. जैन मुनियों के अंतिम संस्‍कार में लोग हर चरण में बोलियां लगाते हैं और उससे जुटने वाली रकम का इस्‍तेमाल लोगों की भलाई में किया जाता है. दुनिया में कई संप्रदाय ऐसे भी हैं, जहां अंतिम संस्‍कार के बाद पूरा परिवार राख का सूप बनाकर पी जाता है. बौद्ध धर्म में अंतिम संस्‍कार की अलग ही प्रक्रिया है.
दुनियाभर में माने जाने वाले ज्‍यादातर धर्मा और संप्रदायों में मृत्‍यु के बाद या तो शव का दाह संस्‍कार किया जाता है या उसे दफना दिया जाता है. हालांकि, अंतिम संस्‍कार के लिए इनके अलावा भी कई तरह की प्राचीन परंपराओं को लोग आज भी निभाते हैं. ऐसी एक परंपरा के तहत बौद्ध धर्म में संतों और साधुओं के साथ ही आम लोगों के अंतिम संस्‍कार की प्रक्रिया काफी अलग है. यहां मृत्‍यु के बाद ना तो शव को दफनाया जाता है और ना ही जलाया जाता है.

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