ये मुद्दा ऐसा है जिसपर सोचने की जरूरत ज्यादा है.. ये सीधे सीधे लोकतंत्र की हमारी परिभाषा.. ऑफ द पीपुल, बाय द पीपुल, फार द पीपुल यानी लोगों का, लोगों द्वारा, लोगों के वास्ते.. इस मसले से जुड़ा है... लोकतंत्र में जनता ही सरकार को चुनती है... और सरकार की जवाबदेही लोगों के प्रति होती है.. क्योंकि जनता के पैसों का इस्तेमाल सरकार जनता के लिए करती है.. एक तरह से पब्लिक यानी जनता सरकार को अथॉरिटी देती है कि वो उनके पैसों का सही इस्तेमाल करें.. सुविधाओं का ख्याल रखें.. क्या ऐसा होता है.. शायद नहीं.. होता भी है तो बेहद कम.. और इसपर सरकार में बैठे नेता, अफसर मामलों की टालने की कोशिशों में ज्यादा नजर आते है... इस पूरे मुद्दे की दो तरीकों से पड़ताल करते हैं.... पहले देखिए कि कैसे जांच समितियों की जांच को ठंडे बस्तों में डाला जाता है...