इस हफ्ते चर्चा का मुख्य विषय रहा पश्चिम बंगाल में सीबीआई का अनपेक्षित छापा, नतीजे में सीबीआई टीम की गिरफ्तारी और साथ में ममता बनर्जी का सत्याग्रह. ममता बनर्जी ने अपने पुलिस प्रमुख राजीव कुमार से पूछताछ करने पहुंची सीबीआई टीम को पूरे हिंदुस्तान में सुर्खी बना दिया. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई से संबंधित एक लेख लिखा जिसे किसी भी भारतीय मीडिया ने प्रकाशित नहीं किया. इस लेख में मुख्य न्यायाधीश से 4 सवाल पूछे गए थे. इसको लेकर मार्कंडेय काटजू ने भारतीय मीडिया के चरित्र, कार्यशैली पर काफी तीखा प्रहार किया. साथ ही राहुल गांधी का नितिन गडकरी के बयान को समर्थन और ट्विटर पर हुई बहस और अन्ना हज़ारे का रालेगण सिद्धि में अनशन आदि विषय इस बार की एनएल चर्चा के केंद्र में रहे.
चर्चा में इस बार वरिष्ठ पत्रकार अनुरंजन झा पहली बार मेहमान के रूप में हमारे साथ जुड़े. झा एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. साथ ही पत्रकार और लेखक अनिल यादव और न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकर आनंद वर्धन भी चर्चा में शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
सीबीआई और ममता बनर्जी के जुड़े टकराव पर बातचीत करते हुए अतुल ने आनंद से कहा, “सीबीआई ने कोलकाता के पुलिस प्रमुख राजीव कुमार के यहां छापा मारा. जवाब में बंगाल की पुलिस ने सीबीआई अधिकारियों को ही गिरफ्तार कर लिया. भाजपा कह रही है ये एक संवैधानिक संकट है, तृणमूल वाले कह रहे है ये लोकतंत्र की हत्या है. विरोध में ममता बनर्जी सत्याग्रह पर बैठ गईं. यहां तक तो सब ठीक था लेकिन साथ में अजीब बात यह रही कि राजीव कुमार भी सत्याग्रह पर बैठ गए. एक पुलिस अधिकारी का इस तरह से सत्याग्रह पर बैठ जाना क्या बताता है?”
आनंद ने इस स्थिति को पुलिस के राजनीतिकरण से जोड़ते हुए कहा, “जितनी भी अखिल भारतीय सेवाएं हैं, आईएएस, आईपीएस आदि, यह सभी अचार संहिता नियम 1968 से जुड़ी हैं. पहले राजनैतिक वर्ग और अधिकारी तंत्र दोनों का एक हद तक तालमेल था क्योंकि एकमात्र शक्तिशाली पार्टी कांग्रेस थी. अब राज्यों के स्तर पर राजनीति का स्थानीयकरण हुआ है, इसके फलस्वरूप अधिकारियों का भी बंटवारा हुआ है. अधिकारी जातीय खेमों में भी बंटे हुए हैं. सबसे ज़्यादा रा?